कितना कुछ है मेरे पास,
फिर काहे की मन में प्यास |
आँखों को है किसकी आस,
आखिर किसकी मुझे तलाश |
शांत समर क्यों उठती लहरे,
एक क्षण भी ये न ठहरे |
मुझे हँसाते कितने चेहरे,
भरने मन के घाव गहरे |
अब नही रही वैसी बेसुधता,
जागी भावो में चंचलता |
हर कोई इसमें हरित रस भरता,
फिर भी मन छाई पतझरता |
देखूं जब कब स्वप्न अधूरे,
जानू न होने है पूरे |
अपनों ने मिटाई सारी पीरे,
फिर भी डूबू धीरे धीरे |
अँधियारा ये कैसा धुंधला,
रोज जलाऊँ अपना पुतला |
जिस मन से जीवन था उजला,
उस कोमल को किसने कुचला |
पाकर भी खुशियाँ न पास,
मन है आखिर किसका दास |
आँखों को है किसकी आस,
आखिर किसकी मुझे तलाश |
- अतुल कुमार वर्मा[13-10-09]
Aakhir Kiski Mujhe Talash | Hindi Poem
Reviewed by Atul Kumar Verma
on
मई 16, 2011
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