रुखा सुखा मेरा मन है ,
क्यों स्थिर मेरा जीवन है |
प्राण बहा जाता मझधार,
किनारों से हुई अनबन है |
जो कब से सुख की रह ताके,
अब मुरझाई वो चेतन आखें |
इतना मलिन ह्रदय दर्पण है,
कोई इसमें कभी ना झाकें |
संसार सार अब मैंने जाना,
दुःख देकर संभव सुख पाना |
पर सुख की इच्छा कही करी तो,
दुःख में ही जीवन कट जाना |
नीरस है इस मन के छाते,
सजल परत से ढके है नाते |
न कोई पहुंचे मेरे उर तक,
सब बाह्य देख वापस मुड़ जाते |
जीवन तुझसे ही भगवन है,
कर दे तृप्त , शुष्क उपवन है |
रुखा सुखा मेरा मन है ,
क्यों स्थिर मेरा जीवन है |
- अतुल कुमार वर्मा [12-10-09]
Rukha Sukha Mera Man Hai | Hindi Poem
Reviewed by Atul Kumar Verma
on
मई 16, 2011
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं: