दया थोड़ी बहुत तो सबमे होती होगी |
निर्दयता देख दया सोच सोच रोती होगी |
निर्दयता जिस पर टूटी होगी वो यही कहेगा |
अपने ऊपर तू क्या यही प्रहार दोहरा सकेगा |
कहते हैं करुना में तो पिघल जाते हैं पत्थर |
हिंसा देख दया भी झूठी लगती है अक्सर |
सच है दया हर प्यारे को प्यार से सहलाती है |
जो न देखे प्रेम प्यासी आँखों को निर्दयता कहलाती है |
निर्दयता भी तुच्छ भाव से कभी दया दिखलाती है |
अपने इस काम पर खुद को ही धमकाती है |
निर्दयता पर दया करो इसकी उसको इच्छा है |
दया दिखाकर दया स्वयं ही भय से देती शिक्षा है |
निर्दयता हर प्राणी को अपने से दूर भगाती है |
पर दया सदा ही निर्दयता को प्यार से पास बुलाती है |
निर्दयता कुछ कमजोर किस्म की होती है,क्योकि,
दया थोड़ी बहुत तो सबमे होती होगी |
निर्दयता देख दया सोच सोच रोती होगी |
- अतुल कुमार वर्मा
Daya (दया) | Hindi Poem
Reviewed by Atul Kumar Verma
on
जून 25, 2011
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