Daya (दया) | Hindi Poem



दया थोड़ी बहुत तो सबमे होती होगी |

निर्दयता देख दया सोच सोच रोती होगी |

निर्दयता जिस पर टूटी होगी वो यही कहेगा |

अपने ऊपर तू क्या यही प्रहार दोहरा सकेगा |

कहते हैं करुना में तो पिघल जाते हैं पत्थर |

हिंसा देख दया भी झूठी लगती है अक्सर |

सच है दया हर प्यारे को प्यार से सहलाती है |

जो न देखे प्रेम प्यासी आँखों को निर्दयता कहलाती है |

निर्दयता भी तुच्छ भाव से कभी दया दिखलाती है |

अपने इस काम पर खुद को ही धमकाती है |

निर्दयता पर दया करो इसकी उसको इच्छा है |

दया दिखाकर दया स्वयं ही भय से देती शिक्षा है |

निर्दयता हर प्राणी को अपने से दूर भगाती है |

पर दया सदा ही निर्दयता को प्यार से पास बुलाती है |

निर्दयता कुछ कमजोर किस्म की होती है,क्योकि,

दया थोड़ी बहुत तो सबमे होती होगी |

निर्दयता देख दया सोच सोच रोती होगी |


- अतुल कुमार वर्मा

Daya (दया) | Hindi Poem Daya (दया) | Hindi Poem Reviewed by Atul Kumar Verma on जून 25, 2011 Rating: 5

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