रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलयुग आएगा,
हंस चुगेगा दाना तिनका, कौवा मोती खायेगा |
आज के लोग हैं बड़े निराले,
वर्दी सफ़ेद पर धंधे काले |
घूसखोरी का बोल बाला,
पर तिजोरियों में जड़ा है ताला |
झगड़े लफड़े रोज होते, शांति दिवस कब आयेगा,
हंस चुगेगा दाना तिनका, कौवा मोती खायेगा |
गिर रही हैं मिसाईले, फट रहे हैं बम,
रोक सको तो रोक लो, किसमे इतना दम |
भ्रष्टाचार रोकने की तुम, ताकत रखना सीखो,
न्याय नही मिल पायेगा, चाहे जितना चीखो |
सच्चाई को कौन पूछता, हर अन्याय पथ पर जायेगा,
हंस चुगेगा दाना तिनका, कौवा मोती खायेगा |
नेता नगरी बड़ी ही काली,
शक्ल से दिखती भोली भाली |
झूठ बोलकर वोट लूटे, जनता के सब सपने टूटे |
महगाई बढती ही जाती, आखिर बजट सरकार बनाती |
खुद हराम का पैसा खाती, लोगो को भूखा मरवाती |
हर देश प्रगति कर रहा है, अपना देश पिछड़ जायेगा |
हंस चुगेगा दाना तिनका, कौवा मोती खायेगा |
इस दुनिया की चालाकी देखो,
किसी से कुछ मतलब न रखो |
वर्ना निर्दोष फंस जाओगे,
सारा जीवन पछताओगे |
सबके भगवन रामचंद्र का कहना सच हो जायेगा,
हंस चुगेगा दाना तिनका, कौवा मोती खायेगा |
- अतुल कुमार वर्मा
Hans Chugega Dana Tinka Kauwa Moti Khayega | Hindi Poem
Reviewed by Atul Kumar Verma
on
जून 25, 2011
Rating:
Very Nice..
जवाब देंहटाएंVery Nice..
जवाब देंहटाएंImpressive
जवाब देंहटाएंImpressive
जवाब देंहटाएंImpressive
जवाब देंहटाएंbest poem on corruption.
जवाब देंहटाएंwhat a guy
जवाब देंहटाएं