Kuch Apna Main Dhundh Raha | Hindi Poem

Kuch Apna Main Dhundh Raha | Hindi Kavita


जब भी धुंधले हुए मूर्त के आईने,

याद आकर कह जाती कब आई मै,


क्यों चमक समायी अब मेरी परछाई में,

क्यों गिनता स्पंदन मैं तन्हाई में |


कोई बेगाना अपना मैं ढूढ़ रहा,

सपनो में एक प्यारा सपना ढूढ़ रहा,


नदी नहीं सागर का अंत मैं ढूढ़ रहा,

इस बुझी रात में नया सवेरा ढूढ़ रहा |


नही पता था धावक बनकर आया हूँ मैं,

तृषित हृदयों पर बदल बनकर छाया हूँ मैं,


कितनो की जीवन ज्योति की काया हूँ मैं,

कैसे जाऊं अलग जब उनके जीवन का साया हूँ मैं |

-अतुल कुमार वर्मा
Kuch Apna Main Dhundh Raha | Hindi Poem Kuch Apna Main Dhundh Raha | Hindi Poem Reviewed by Atul Kumar Verma on जून 25, 2011 Rating: 5

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