तुमने कहा और मैंने सहा |
सदा हमेशा और सनातन |
दिन रज कण कण और छन छन ||
तुमने कहा ये सरल मार्ग है |
मैंने कहा मैं कठिन चुनुगा ||
तुमने कहा कांटे है उसमे |
मैंने कहा मैं डटकर सहूंगा ||
तुमने कहा ये लो...सुख है रख लो |
मैंने कहा संघर्ष तो चख लूं ||
तुमने कहा तू विवेकहीन है |
मैंने कहा मैं मन मौजी हूँ ||
तुमने कहा अनुचित ये सपना |
मैंने कहा बस यही था अपना ||
तुमने कहा आशाएं तोड़ी |
मैंने कहा हाँ..कमियां थोड़ी ||
तुमने कहा सीमायें लांघी |
मैंने कहा बंधन तो खोलो ||
तुमने कहा तेरे कुल में अँधेरा |
मैंने कहा मैं कुल दीपक हूँ ||
तुमने कहा कितना तुमने पाया |
मैंने कहा और कितना खोया ||
तुमने कहा मैंने क्या पाया |
मैंने कहा सब तेरा ही है ||
तुमने कहा मेरा छन छन तेरा |
मैंने कहा कहा मेरा कण कण तेरा ||
तुमने कहा मैंने सुख त्यागा |
मैंने कहा भिक्षुक क्या त्यागे ||
तुमने कहा मैं निष्पापी हूँ |
मैंने कहा भगवन भी पापी ||
तुमने कहा तेरे भाव नीच हैं |
मैंने कहा काहे की खीझ है ||
तुमने कहा पीरे दी मुझको |
मैंने कहा मरहम का दर्द है ||
तुमने कहा मन कपट वास है |
मैंने कहा मन तेरा दास है ||
तुमने कहा अब तो खुश कर दे |
मैंने कहा खुलकर तो रो लूं ||
- अतुल कुमार वर्मा [27-07-11]
Tumne Kaha, Aur Maine Saha | Hindi Poem
Reviewed by Atul Kumar Verma
on
अगस्त 03, 2011
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