हाज़िर हूँ एक और भावुक हिंदी कविता के साथ। दरअसल ये कविता लिखे हुए मुझे
कई साल बीत गए। उस समय शायद मैं कक्षा नौ या दस में हुआ करता था। तब से
ये कविता मेरी नए साल के तौहफे में मिली पुरानी डायरी में पड़ी अपने पढ़े
जाने के इंतज़ार में थी। हर कविता की एक कहानी होती है, आपके आस पास होती
घटनाये, आपके आस पास के लोग आपके विचारों को प्रभावित करते हैं और कभी कभी
जब हृदय भर आता है तो ये मन की अभिव्यक्ति एक कविता के रूप सामने आ
जाती है।
तो क्या है इस कविता की कहानी, कुछ खास नहीं एक आम ज़िंदगी, थोड़ी नाउम्मीदी और कुछ निजी नुकसान। शुरू से शुरू करूँ तो मेरा जन्म एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। मैं अपनी छोटी सी दुनिया, मेरे छोटे से गांव में बड़ा हो रहा था। बचपन मानो धूल भरी मिट्टी में थक कर चूर होने तक खेलने और माँ से खिलौनों की ज़िद्द करने में ही निकल गया, और जब तक होश संभाला, परिस्थितियां काफी बदल सी गयी थीं। दुनिया अब हमारी जेब में जमा पूँजी से ज्यादा महगी लगने लगी थी, हम बस ज़रुरत भर का खरीदने लगे थे और कभी कभी मांगने भी, अब चाय में कभी कभी शक्कर नहीं होती थी और कभी कभी तो दूध भी नहीं, खेत की फसलें बस ज़रुरत भर का देती थीं और कभी कभी वो भी नही। पुरानी किताबों से नई किस्मत लिखने मैं और मेरी २ बहने जी भर के पढाई कर रहे थे, हमारी मेहनतकश दुनिया में पढ़ने के लिए समय की कोई कमी नहीं थी। पर बढ़ते बच्चो के साथ बढ़ रहे थे उनके खर्चे, रोटी कपड़ा और मकान तो था पर और ऊँचा पढ़ने के पैसे कौन देता, उमीदो की बस पकड़ने का किराया कौन देता। उतार चढ़ाओ इतने आये की चोटों से मन खुरच सा गया। अब मन को दिलासा देने का वक़्त हो चला था की सब सबको नहीं मिलता। गरीबी बहुत कुछ देती है। खटखटाते दरवाजों पे अनसुनी देती है कभी हाथ फ़ैलाने की बेबसी देती है, कभी इंकार देती है कभी पसीने की धार देती है। कभी मिटटी से एक होने का अभ्यास देती है तो कभी जीवन का सार देती है। मैं तो कहता हूँ की हम सभी को थोड़े दिन के लिए गरीब बन के देखना चाहिए और अगर मन नहीं है तो कोई बात नहीं मैं बता देता हूँ कैसा होता है गरीब होना।
गरीब
वही जो तुलना में अपने को ही छोटा पाता है |
वही जो उपकार कर कृतज्ञ सदा बन जाता है |
वही जो दुःख से सुख का दुर्लभ मार्ग निहारता है |
वही जो कर्तव्य मार्ग पर अकेला ही ठोकर खाता है |
वही जो आशा लेकर जाता है, निराश ही घर जाता है |
वही जो तुच्छ हीन और दुर्बल सदा कहलाता है |
वही जो आभाव में भी तन्मयता से जीवन का साथ निभाता है |
वही जो जीवन भर लाचारी की मार विवश हो खाता है |
वही जो धीरे धीरे तिरस्कार की परिभाषा बन जाता है |
वही जो दुनिया में धन का विपरीत अर्थ कहलाता है |
वही निर्दोष, बेचारा खुद को गरीब बतलाता है |
If you prefer reading in English, I got you covered, here is the
same poem written in English.
Vahi jo tulna me apne ko hi chhota pata hai.
Vahi jo upkaar kar kritagya sada ban jata hai.
Vahi jo dukh se sukh ka durlabh maarg niharta hai.
Vahi jo kartavya marg par akela hi thokar khaata hai.
Vahi jo aasha lekar aata hai, nirash hi ghar jata hai.
Vahi jo tuchh heen aur durbal sada kahlata hai.
Vahi jo abhav me bhi tanmayta se jeevan ka saath nibhata
hai.
Vahi jo jeevan bhar lachari ki maar vivash ho khata hai.
Vahi jo dheere dheere tiraskaar ki paribhasha ban jaata
hai.
Vahi jo duniya me dhan ka vipreet arth kahlaata hai.
Vahi nirdosh bechara, khud ko gareeb batlata hai.
- Atul Kumar Verma
Not a fan of reading, listen to me recite this emotional hindi poem on Youtube.
I hope you liked my poem on poverty, share it with your family and friends using
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no words
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