नमस्कार दोस्तों,
कहते हैं,
"भगवान ने मनुष्य को नहीं बनाया बल्कि मनुष्य ने भगवान को बनाया।"
कहीं तक सच भी है। मनुष्य के उदय के साथ ही ईश्वर का उदय हुआ है। हमारे मन में सवाल उठता है की ये ईश्वर आखिर है क्या ?
मेरे विचार से ईश्वर हमारे विश्वास का ही स्वरुप है। परन्तु, वास्तव में वह निराकार ही है। सदा से विद्यमान इस ब्रम्हाण्ड में एक चमत्कारी सयोंग हुआ और मानव जन्मा। इसी सयोंगी शक्ति ने मानव को चिंतनशील बनाया। इस अद्भुत और चंचल मानव को सत्य का ज्ञान नहीं था। अतः उसने इसी चमत्कारी योग शक्ति को नाम दिया ईश्वरीय शक्ति का।
मानव ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निराकार ईश्वर को मूर्त रूप दिया और प्रार्थना द्वारा ईश्वरीय सहायता की मांग की। पर मेरे विचार से वह योग शक्ति तो इन सब से परे है। ये पूजा पाठ सब नादान मानव का अज्ञान दिखाते हैं। कबीर ने भी मूर्ति पूजा, मन्त्र जाप आदि को आडम्बर माना है। कर्म ही वास्तविक है।
अब प्रश्न यह है की ये ईश्वर स्वरुप राम, कृष्ण कौन हैं। मेरे विचार में ये इतिहास के वे पुरुष थे जिन्होंने जीवन में ऐसे अद्भुत कार्य किये जो शायद कोई साधारण मनुष्य न कर सके। मानव चंचल प्रकृति का है, अतः वह अपने विषय में सोचता है। आज के युग में राम जैसे पुरुष मिलना असंभव है क्योंकि इस कलयुग में सतयुग जैसी मानवता दम तोड़ चुकी है। अतः आज मानव उन महापुरुषों को पूजने लगा है, जिनकी अद्वितीय चमत्कारिक कथाएं उसने सुनी।
वास्तव में सृष्टि अनन्त काल से अनन्त तक फैली हुई है और उस प्रबल संयोगी शक्ति से ही सब जुड़े और इस शुन्य आकाश में इतना विचारवान मानव आ गया। हमें यह सोचना है कि इस योग शक्ति ने सृष्टि के पांच तत्वों "धरा, जल, अग्नि, वायु, नभ" को जोड़कर हमारा निर्माण क्यों किया ? उसने हमें यूँ ही सृष्टि में ही क्यों नहीं छितराये रखा ? क्यों हमें अस्तित्व दिया ?
जिन लोगो ने इन प्रश्नों को महत्त्व दिया, उन्हें संसार याद करता है। और जिन लोगो ने इसे मात्र अपना भाग्य समझा वे अस्तित्व खोकर पुनः मिट्टी में ही मिल गए। हमें सृष्टि निर्माण में हिस्सेदारी मिली है इसका लाभ लेकर हमें अपने समय को दूसरों के लिए उपयोगी बनाना है, परहित सोचना है और ऐसा कार्य करना है जिससे हमें संतोष हो की हाँ मेरा जीवन सार्थक था। ऐसा जीवन जीने वाले मानव महापुरुष होते हैं और सृष्टि में आगे राम और कृष्ण की तरह पूजे भी जायेगे। अर्थात, वे ईश्वरीय गुण को धारण करेंगे।
मानव नादान और अज्ञानी है। वास्तव में जीवन की सत्यता मृत्यु में है। जीवन कुछ समय का खेल है जिसमें मानव कुछ समय तक इस संसार में अपने करतब दिखाता है। परन्तु वास्तव में मृत्यु ही अमर है, जो सदा अर्थात आदि से है और अंत तक रहेगी। मानव तो इस सांसारिक जाल में फंसा प्राणी है, तुच्छ है जो अभी तक ब्रम्हांड के अपार रहस्यों को जानने की कोशिश में है। वह सत्य और अपने अस्तित्व को खोज रहा है परन्तु, अभी तक प्रतीक्षा में ही है।
-अतुल कुमार वर्मा
Sahi
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